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मुद्दत हुई, न किया-धरा कुछ / नईम
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मुद्दत हुई, न किया-धरा कुछ
चलो आज हम संस्कृति कर लें।
वेद-पुराण न कर पाएँ तो
चलो चलें मनुस्मृति कर लें।
बुझा न पाएँ भूख-प्यास तो,
अनशन व्रत का दर्शन गढ़ लें।
घूम रहे छुट्टा हुसैन के
बेलगाम घोड़ों पर चढ़कर,
अनुभव की भट्टी में झौकें
पश्चिम को गीता-सा पढ़कर
तनिक-तनिक हाफिज फिरदौसी,
खुसरो की पुनरावृत्ति कर लें।
गली-गली में कलावीथिका,
हरघर में ही अंतरंग है,
उत्सव हो लें आप शौक से,
हम तो स्थायी प्रसंग हैं।
मंचों पर छा रहे बिदूषक
उनके जैसी आकृति कर लें।
सुबह करें पूरब की बूढ़ी-
शामें हों पश्चिमी नवेली,
स्थापत्य: गुहाओं वाला।
चित्रकला को करें पहेली।
सध जाए तो संस्कृति वरना,
गै़रों की हम अनुकृति कर लें।