ऋतुओं के अनुक्रम ही सारे
बिटर गए हैं।
साज़िंदे सो रहे
साज़ सब उतर गए हैं।
ऋतुदर्शन गाने के दिन फिर कब आएँगे?
लोकवेद गायक कुमार अब कब गाएँगे?
सुर संवादी
कैसे, क्योंकर बिखर गए हैं।
आए नहीं समय पर आसों क्वाँर कार्तिक,
उतरे नहीं नील झीलों पर पाखी यात्रिक।
सतहों पर सन्नाटे सूने
लहर गए हैं।
शरद, शिशिर के पाँव पालने में दिखते हैं,
क्या होगा आर्सो बसंत का वो लिखते हैं?
मौसम के पंजे गालों पर
उछर गए हैं।
खड़े खेत को दुश्मन ये दिन
बखर गए हैं।