भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुछ न कुछ तो करना होगा / नईम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:06, 14 मई 2018 का अवतरण
कुछ न कुछ तो करना होगा।
नाव मिले या नहीं रामजी।
लेकिन पार उतरना होगा।
धरे हाथ पर हाथ भला कब तक बैठेंगे?
पेट रहें खाली तो वो निश्चित ऐंठेंगे।
घर बैठे घाटे के भय से
आने वाले किसी प्रलय से
बाहर हमें निकलना होगा।
एक कमाए, घरभर खाए नहीं रहे दिन,
मेजबान अब परस रहे हैं रोटी गिन गिन;
ऋण हों या अनुदान शरण से-
दुर्योधन ही नहीं करण से,
क्रमशः हमंे उबरना होगा।
है हालत खराब दोजख़ हो या बहिश्त में,
उतर जायँ हो सके अगर जिंदा तिलिस्म में;
तिलकित करके भाल रक्त से-
अगर ज़रूरी हुआ वक़्त से-
पहले हमको मरना होगा।