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चलो चलें उस पार कबीरा / नईम

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चलो चलें उस पार कबीरा,
लेकर अपने झाँझ-मजीरा!

यहाँ शोरगुल है कुछ ज्यादा,
सुर-संगीत न सीधा-साधा,
सबके सब मिट्टी के माधव,
घासफूस-भूसे की राधा।

ललचाई सीता-सी बहना,
मायावी मृग-से ये वीरा!

किसके हैं अब असली पालिश?
कोई नहीं खालसा खालिस,
तुलसी संत, महंत हुए तो
ठोक रहे दादू पर नालिश।

सबके सब प्रभु-से रनछोड़ी
महज नाम के ही रनधीरा!

आगत के आसार दिख रहे,
भूखे जन साकार दिख रहे,
भरे पेट जिनके भिक्षा से,
वही भरे बाजार बिक रहे।

बड़ी तरक्क़ी हुई मुल्क़ की-
प्यादे भी हो गए वजीरा।

चलो चलें उस पार कबीरा,
लकर अपने झाँझ-मजीरा।