भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिन अहीर भैरव गाए हैं / नईम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:14, 14 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिन अहीर भैरव गाए है,
रात गूजरी तोड़ी गाए।

जाने किन-किनके हाथों में शुरुआत के आज सिरे हैं,
पवन चले पुरवाई आगे, पीछे बरखा मेघ घिरे है।

दुख के लगे पहाड़,
कहाँ तक रोने रोएँ,
भेरू और चेतुआ से ले
अधनंगा पचकौड़ी गाए।

सूखे से बच गए आज तो कल बूड़े की आशंकाएँ,
धू-धूकर जल रही चिताओं-सी जनमानस की चिंताएँ,

क्या पहिने, क्या ओढ़े मनुआ
श्रद्धा कैसे जाँघ उधारे?
मौसम बैरी हुए जनम के,
फिर भी प्रीत निगोड़ी गाए।

व्यर्थ हुई आशीषें माँ की, धरती के व्रत-तीज सिराने,
जो अक्षयवट साबित होते, वो संजीवन बीज हिराने;

सविनय करें निवेदन किससे,
किसके आगे हाथ पसारें?
थिर माटी की मूरत ही क्यों,
धारा निपट भगोड़ी गाए।

दिन अहीर भैरव गाए है,
रात गूजरी तोड़ी गाए।