भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी दे / नईम
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:32, 14 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह=पहला दिन मेर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पानी दे
पानी दे, गुड़-धानी दे।
ठहरे हुए नदी-पोखर को
फिर से नई रवानी दे।
पानी दे, पानी दे।
सब्रोक़रार बाँध जीवन के,
नमक-मिर्च-प्याजों के बल,
टिके हुए बस दो रोटी पर
खा-पीकर मोटे चावल;
मुँह बाए ये प्रश्न खड़े हैं
उत्तर तू लासानी दे।
पानी दे
गुड़-धानी दे।
इन बाँधों से उन बाँधों तक,
पूरा एक महाभारत वे;
लड़े जा रहे भूखे-टूटे,
कुछ स्वारथा कुछ परस्वारथ से।
राह बता लँगड़े-लूलों को
गूँगों को तू बानी दे।
पानी दे, पानी दे,
गुड़-धानी दे।