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बुढ़शाला के बेयान / 2 / भिखारी ठाकुर

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बुढ़शाला के रोपऽमाथ। पार लगइहन महेन्द्र नाथ॥
मही किनारे बा मंदिर जेकर। बूढ़ पर दया उपटी तेकर॥
जहँवाँ बहत गंुडक धार। ऊहे लगइहन बेड़ा पार॥
गंगा जी से उत्तर नियरा। ओहिजा से दखिन दियरा॥
जेकरा पूरब हाजीपुर। कहे भिखारी बतिया फूर॥
जिला छपरा, सोनपुर गाँव। जानत बा दुनियाँ भर नाँव॥
उनके चरन में नाउँ माथ। जिनिकर नाँव हऽ हरिहरनाथ॥
बगदल बाटै सँवारऽ काम। गौरीशंकर सीताराम॥
हउए मोर ‘भिखारी’ नामा। कुतुबपुर में बाटे मोकामा॥

वार्तिक:

हित हितई इहे ह। आजकल जादे मूँह देखल बोलिनिहार बाड़न। मतारी-बाप के जे बेटा अपमान करेले, उनका के ना समुझावस कि अइसन ना करे के चाहि। असल बात मुँह पर करेके चाहीं कि माता-पिता के सेवा करऽ।

प्रसंग:

अपनी मित्र-मण्डली मंे बुढ़शाला की स्थापना एवं संचालन की मानसिकता बनाना आवश्यक है, ताकि बूढ़ी माँ को आँसू नहीं बहाना पड़े।