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बुढ़शाला के बेयान / 1 / भिखारी ठाकुर

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श्री गणेश के चरन के आसा। मन करहूँ पाका विश्वासा॥
महाबीर जी राखऽ लाज। बिगड़ल सकल सँवार लऽ काज॥
देवी दया करीं मन लाई। सकल बिघ्न के देहु भगाई॥
जात के नाऊ गेयान है थोरा। लाज राखहूँ नन्द किसोरा॥
माथ मूड़त में लागे ना देरी। ढील गिरा के कइलीं ढेरी॥
जानत बानी नाच के काम। अब ना मिलिहें सीताराम॥
विप्र चरन देखत मन ना सरमावे। नाम जपे में आलस भागे लागे॥
संत नाम सुनी मन भागे। नाम जपत में आलस लागे॥
सत-संगत, ब्रत, तिरथ, दाना। सुनि मन तनिक करे नहिं कान॥
गऊ-गरीब-पितरन के पानी। कछु ना बनल जीव अलसानी॥

दोहा

शिव अरु सती दया करहू, हरहू सोक सन्ताप।
लखि के गँवार गरीब मोही, होखऽ तैयारी आप॥

वार्तिक

केहि कारण शिव कावे नाम भिखारी परी-

नितहीं नित भंग धतुर चबावत अंग समुचा में खाक भरी।
डमरू त्रिशुल लिए कर में, कोशल्या-गृह जाई के अलख करी॥
दीन दयाल सदा जनपालक आप उदासी के रूप धरी॥
भेष भिखारी बनी शिव के तेही कारन नाम भिखारी परी॥

प्रसंग:

वर्त्तमान काल में परिवार बूढ़े माता-पिता या अन्य बूढ़ो को नाना प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है। इसलिए लोककवि का दूरदृष्टि परक निवेदन है कि बूढ़ों के लिए वृद्धाश्रम की व्यवस्था जन सहयोग से की जाय। यदि नदियों के किनारों पर व्यवस्था हो, तो सर्वोत्तम है। प्रसन्नता की बात है कि कुछ संस्थाओं का ध्यान इस ओर गया है और ऐसे आश्रमों की व्यवस्था हो रही है। इस आन्दोलन को तेज करने की आवश्यकता है।

वार्तिक:

अब देखल जाय कि गाय वास्ते गौशाला खुल गइल। गरीब वास्ते धर्मशाला खुल गइल। गँवार वास्ते पाठशाला खुल गइल। बड़ा अच्छा भइल। अब बूढ़ खातिर बुढ़शाला खुल जाइत न, बहुत अच्छा रहल हा; काहेकि बूढ़ के बड़ा तकलीफ बीतत बा-काहे से जे जवान छवड़ा जब तक ना खास, तब तक औरत लोग के डर बनल रहेला जे तनीको दाल में नून बेसी होई, बात सुनब। बूढ़ का खइला के कुछ फिकिर ना रहे। यदि बूढ़ एक दफे से दूसरा दफे पुछलन कि बबुआ-बहु खाय के भइल, त ई सुनि के पतोह कहत बाड़ी-आह बाबा आह बाबा! हाड़ी दलदला गइल। तब तक ले बेटा आ गइलन। पुछतारन का भइल हा रे। पतोह कहत बाड़ी जे का भइल हा। कइ एक दफे पुछलन खायेक भइल। खाये के होई, त हमहीं खाइब कि बाबूसाहेब खइहन। बेटा-‘आरे आदमी हवन कि कुत्ता।’ बाप-‘हम कुत्ता कइसे हुईं, भूख नु लागल बा।’ अरे भूख के नाती’। सोझा से चल जो नात मार मूकन के पीठ गुल-गुल कर देबि।’ बाप दोबर धोती ओढ़ि के आँगना से दुअरा पर सूत के रोअत बाड़न, बेटा का कान्हा पर अलवान झूलत बा। बाप धोती का तरे लोर पोंछत बाड़न। केहू से कहत नइखन, काहेकि ई बात कहब, त छबड़ा जान जाईं, तब घर में रहल दुर्लभ हो जाई। लरिका कहत बाड़न स कि बाबा एगो कथा कहऽ। बाबा का कथा लउकत बा कि, बाबा का ऊ नि लउकत बा, जेह दिन एही लड़िका खातिर महाजन के दुआर अगोरले रहलन। अगर महाजन (एक) रुपया देलन, त पन्द्रह आना के खरची वो एक आना के मिठाई ले अइलन कि बबुआ बड़ होइहन, त हमरा के सुख दीहन। से बबुआ के अब ई बोली सुनि के मन में गुनि-गुनि के रोअत बाड़न, ई केहू कहे कि हिन्दू वास्ते, चाहे मुसलमान वास्ते से बात ना ह।