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नाई बहार / 4 / भिखारी ठाकुर

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प्रसंग:

सामंती व्यवस्था में शादी के पूर्व होनेवाले तिलकोत्सव में नाई की भूमिका तथा उसकी समस्याओं एवं त्रासदी का वर्णन।

चौपाई

शादी के दिन पहुँचल राजा। तिलके में से बाजल बाजा॥
धावत छूटल गोड़ के छाल। ह जजमनिका निज महाल॥
रात के बोराहट दिन के नेवता। काम के कइक तरह के भवता॥
तेह मेंनइखे मन अनसात। छत्तीस गण्डा सहलन बात॥
कटिया खातिर गइलन धावल। तेकर हक कोंहार लोग पावल॥
पत्तल घटलऽ, धावल जइहऽ। बारी ना होखस त लेले अइहऽ।
माली ना लेके अइलन फूल। एह में बा नाउ के भूल॥
देरी भइल ना आइल ढोल। ठाकुर तूँ हउअ बकलोल॥
दही-अच्छत-मीठा धइलऽ। गउर-गणेश के स्थापन कइलऽ॥
दिहऽ बोलाहटा नगर भरऽ। छटे ना पावे एको घर॥
देखिहऽ बिहने रोकिहऽ मत। नेवता के लिखात बा खत॥
बहुत दूर बा कहे बेचारा। देवे के होई रेल के भाडा॥
बात सुनत में जिव खिसिआइल। आज ना रहित जो तिलक आइल॥
तोहरा के देखलइतीं खेल। ठाकुर कइलऽ बहुत अपेल॥
नाई के माई गिरावे लोर। बबुआ जइहन देश का ओर॥
जूरत नइखे छाता-जूता। कइसे चिठी नेवतिहन पूता॥
' कच्चा सेर भर सतुआ-नून। बेसी ना पइबऽएको बून।
एतने पइबऽ जइबऽ ज़रूर। ना त करबऽ मार के चूर'।
गवलन दुःख 'भिखारी' नाई. सुनि के गुनीं लिजै सब भाई॥

दोहा

अरजी के फरजी पढ़ऽ, चित्त लगा के नीत।
जातिक सभा में कर उचारन, उमरजत बा बीत॥