भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शंका समाधान / 7 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:13, 16 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=शं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वार्तिक:

चाहे मेरा पराक्रम को वह नहीं जानते हैं, जैसे: जब तक परशुरामजी रामजी का पराक्रम को नहीं जानते थे, तब तक रेकार बोलते थे। जान-जाने पर स्तुति करके.

कहि जय-जय जय रघुकुलकेतू। भृगुपति गए बनहि तप हेतू।
रा।च।मा।, बा। 284 / 7

वार्तिक:

किताब में जो-जो मनुष्य हमारे में औगुण को साबूत देते हैं, वह रामचन्द्रजी हैं। मुझे चन्द्रमा समझ करके औगुण् साबित करते हैं।

चौपाई

कोक सोक प्रद पंकज द्रोही, अवगुन बहुत चन्द्रमा तोही॥
रा।च।मा।, बा। 237 / 2