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शंका समाधान / 7 / भिखारी ठाकुर

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वार्तिक:

चाहे मेरा पराक्रम को वह नहीं जानते हैं, जैसे: जब तक परशुरामजी रामजी का पराक्रम को नहीं जानते थे, तब तक रेकार बोलते थे। जान-जाने पर स्तुति करके.

कहि जय-जय जय रघुकुलकेतू। भृगुपति गए बनहि तप हेतू।
रा।च।मा।, बा। 284 / 7

वार्तिक:

किताब में जो-जो मनुष्य हमारे में औगुण को साबूत देते हैं, वह रामचन्द्रजी हैं। मुझे चन्द्रमा समझ करके औगुण् साबित करते हैं।

चौपाई

कोक सोक प्रद पंकज द्रोही, अवगुन बहुत चन्द्रमा तोही॥
रा।च।मा।, बा। 237 / 2