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पंखदार शर अर्धचन्द्र से / रामइकबाल सिंह 'राकेश'
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पंखदार शर अर्ध चन्द्र-से,
भस्मरहित जेसे अंगारे!
सटे परस्पर पुच्छ भाग में
स्वर पर सधे अचूक निशाने;
गहराई तक मर्म चीर कर
लगे खून की नदी बहाने।
टूटे शरवर्षण से तेरे
नभ के तम्बूरे से तारे!
उस दिन, खुले बाल मेघों के
बहने लगी हवा चौबाई,
लिया जन्म मधुऋतु ने, सागर में
लहरों ने लौ अँगड़ाई।
जिस दिन, काल-भाल परर, तरेी
छवि के मैंने चित्र उतारे।
संकेतों में अनबोले-से
अर्थश्लेष की मीड़-मूर्च्छना,
करती जैसे स्वर्णदामिनी
घनमृदंग पर नाद-व्यंजना!
चित्र बनाते न्यारे-न्यारे
दोनों अँधियारे-उजियारे!
(11 दिसम्बर, 1973)