भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रिय, जो गई चली / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रिय, जो गई चली;
फिर वह आ सकती न हवा-सी,
युगावली पिछली।

पवन-पंख पर प्रिय, तेरे बिन,
उड़े चले जाते मेरे दिन,
तेरी धुन में तारे गिन-गिन,
मेरी आयु ढली।
प्रिय, तेरे मग में चलने से,
कलुष मलिन मल के गलने से,
पल-भर ही मन के जलने से,
पलकें बन्द खुलीं।

तेरी वीणा मेरे भीतर,
झंकृत रहती सरगम बन कर,
क्यों मैं ढूँढूँ विह्वल होकर,
तुझको गली-गली।

(20 दिसंबर, 1973)