नानी / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
हम्मर नानी
हमरा लेल
खाली एगो पूर्वजे न रहथ
ऊ रहथ एगो सुन्नर बीज
जेक्कर फल
हमरा में रचल-बसल संस्कार हए
ऊ संस्कार
जे तूफान से हमरा लड़े के सिखएलक
जेइ पर चल क
हम अप्पन जिनगी के सब मोसकिल के
हंसइत-हंसइत पार कइली।
हम्मर नानी!
एगो अएना रहे
जेइमें झांक क
हम अपना-आप के
हुनका अन्दर से निकलइत
देखइत रही।
हम्मर नानी!
सड़क पर लागल
स्ट्रीट-लाईट के रोशनी के तरह रहे
जे घोर अन्हरिया में-
अन्हरिया के मेटबइत रहे।
हम्मर नानी
हमरा लेल
मेघ के बूनी रहे
जेकरा परला से
हम्मर सूखल मन
हरिहर होए लगइत रहे।
हम्मर नानी के साथ
हमरा लेल
जिनगी के उथल-पुथल में
पीपर के छांव जइसन रहे
जहां दू-चार पल रूक क
हम हो जाइत रही-
एकदम से ताजा
जहां पहुंच क
हम्मर सब दुख-पीड़ा
एके क्षण में
छू-मंतर हो जाइत रहे।