भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिखरल फूल / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:46, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना |अनुवादक= |संग्रह=हम्मर लेह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फूल के सौखीन हम
लगएले रही अगना में
एगो पेड़ गुलाब के।
एकदिन देखली-
ओकर डार में लगल रहे
हरिहर पत्ता के बीच
लाल कली गुलाब के।
रात आऊर दिन के बीच
कली विकसल गुलाब के,
भंओरा मंडराइत रहे
अगल-बगल आगे-पीछे
आऊर मुसकाइत रहे
फूल एगो गुलाब के।
समय बीतल फूल पिघलल
दे देलक जगह पराग के।
भंओरा मुसकएलक/इठलएलक
देख सूरत गुलाब के।
मकरन्द पान क के
उड़ गेल ऊ खोज में
दोसर फूल गुलाब के।
आएत भंवरा कहियो
लउटके फेनू इहे डार पर
इहे अभिलास लेले
लोर पीअइत रहल
फूल ऊ गुलाब के।
समय के गति संग
बढ़ल गति बेआर के
बिखर गेल जमीन पर
फूल ऊ गुलाब के।