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यह अनन्त भव-विटप चिरन्तन / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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यह अनन्त भवविटप चिरन्तन,
स्वर-व्य´्जन-विसर्ग का कारण।

द्यावापृथिवीरूप मर्मरित,
कर्मबन्धनों से प्रतिबन्धित,
रज, तम, सत्व गुणों से वर्धित,
रहता सदा म´्जरित नूतन।

देश-काल के उर में विस्तृत,
कुसुमप्रदीपों से आलेकित,
ऊर्ध्वमूल में निखिल उल्लसित,
अमृत-मृत्यु का अंश विलक्षण।

तन्तु-तन्तु में अर्थ अपरिमित,
दिव्य विभा की शक्ति तरंगित,
छाया में घटनाएँ गुम्फित,
पर्णांगों का मर्मर जीवन।