Last modified on 18 मई 2018, at 18:51

चिद्विद्या का खुला चित्रपट / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:51, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सृष्टि-पणव आग्नेय पुरुष का नेमिसंचरण,
चुम्बकीय बल से होता जिसका अभिव्यंजन।
प्रज्ञा का आधान कर रही नियत बिन्दु पर,
ज्योति ज्योति की महाशिरा से जुड़ी तिमिरहर।

प्राणतत्त्व का होता है जब रक्त-अभिसरण,
गुहा-गर्भ से क्षर में अक्षर का परिवर्त्तन।
नाम-रूप में अग्नि-सोम का चरण-समिन्धन,
आकर्षण के नियमन-अनुशासन में बहु बन।
अंगों के रूपान्तर से तब सूक्ष्म अगोचर,
कलारहित बन जाता परमकलामय सुन्दर।

प्राण-अग्नि में अहोरात्र की आहुति देकर,
देवतत्त्व करता अनन्त में यजन निरन्तर।
छन्दभूमि में भूमा की भाषा का प्रणयन,
पूर्व-पूर्व का उत्तर-उत्तर में आवर्त्तन।

बँधे तार में मेरे ज्वालामुखी भयंकर,
अपने विस्फोटक उद्गारों में प्रलयंकर।
आग उगलते लपटों मे लावा के बादल,
भूमण्डल के गरम तवे पर खलबल-खलबल।

करते मेरे अन्तर-ध्वनि-कम्पन का अंकन,
अन्तरक्षि-द्यौ-पृथिवी-सूर्य-चन्द्र-तारागण।
मेरी ऊर्जा का प्रकाश भीतर से बाहर,
फूट रहा निज ध्वनि-लय-स्वर के तुंग शिखर पर।