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ज़रूरत / साहिल परमार / जयन्त परमार
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उनके कैमरे का लेंस
चटका हुआ है
मुझे बनाकर
ग़ुलाम
उन लोगों ने
उसी कैमरे से
भिन्न-भिन्न कोणों से खींची हैं
मेरी तस्वीरें
वे तस्वीरें
यानी श्रुति और स्मृति
गीता और रामायण
यानी चलता रहा है
यही पारायण
लेकिन अब मैं
अपने ही कैमरे से
खींच सकता हूँ तस्वीरें
अपनी और उनकी
हैं वैसी ही
इसलिए वे लोग
मचाते हैं कागा-रोर —
’अलग कैमरे की ज़रूरत नहीं’
’अलग कैमरे की ज़रूरत नहीं’
मूल गुजराती से अनुवाद : जयन्त परमार