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हाथी का कुरता / बालकृष्ण गर्ग
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जन्म-दिवस से कुछ दिन पहले
हाथी ने इस बार-
अपना पहला कुर्ता सिलवाने
का किया विचार।
बंदर कपड़े वाले से ले
कपड़े के दस थान,
पहुँच गया वह फौरन
चूहे दर्जी की दूकान।
बोला-’भैया चूहे, सी दो
सुंदर कुर्ता एक,
पहन उसी को, जन्म-दिवस पर
काटूँगा मैं केक’।
चूहा बोला- ‘उड़ा रहे क्यों
दादा, आप मज़ाक?
मैं नन्हा, कैसे सी सकता
तम्बू-सी पोशाक!’
[धर्मयुग, 5 जून 1983]