भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ हीरो के बाप / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:16, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बंदर ने यूँ धमकाया-
‘ओ बेवकूफ बंदरिया,
समझ रही तू खुद को हेमा
या डिम्पल कापड़िया?
अब तक नखरे बहुत सहे
पर अब मैं नहीं सहूँगा,
तुझे छोड़, श्रीदेवी या
जूही से ब्याह करूँगा’।
कहा घुड़ककर बंदरिया ने-
‘ओ हीरो के बाप!
पहले अपनी शक्ल देख ले
शीशे में चुपचाप’।
[स्वतंत्र भारत (उपहार), 9 जुलाई 1992]