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आटे-बाटे दही चटाके / बालकृष्ण गर्ग

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घर में ‘पा-पा पैयाँ’ डोलें,
मधुर तोतली बोली बोलें।

कान पकड़कर ‘चाऊँ-माऊँ’,
पैरों पर हो ‘झू-झू पाऊँ’।

‘आटे-बाटे दही चटाके’,
तरह-तरह के खेल-तमाशे।

‘कानाबाती कुर्र’ करें हम,
हौआ से अब नही डरें हम।

खाते-पीते हैं मनमाना,
अजब-अटपटा गाते गाना।

हैं अपनी मर्जी के मालिक-
हम सब नन्हें-मुन्ने बालक।
[राष्ट्रीय सहारा (लखनऊ), 21 जुलाई 1998]