भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मम्मी की साड़ी / उषा यादव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह=51 इक्का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मम्मी चली गई स्कूल।
साड़ी गई दरी पर भूल।
लौटेगी वह चार बजे।
तब तक मुनिया क्यों न सजे।

पहुँच गई शीशे के पास।
चेहरे पर छलका उल्लास।
साड़ी पहनी तह को खोल।
बन गई पूरी गोल-मटोल।

तभी पास पापा को देख।
झटपट माँ की साड़ी फेंक।
रंगे हाथ पकड़े जाकर।
मुनिया भागी शरमाकर।