भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भालू जी / उषा यादव

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:20, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह=51 इक्का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

काला कोट पहनकर अपना,
आए मिस्टर भालू जी।
मीठा शहद उड़ाकर भी हैं,
ये पूरे झगड़ालू जी।

डमरू जब बजता है डम-डम,
हो जाते यह चालू जी।
बच्चे सभी बजाते ताली,
नाच दिखाएँ भालू जी।

रामू के घर आज बने हैं,
गरमागरम कचालू जी।
न्योता देता है वह तुमको
पहुँच जाइए भालू जी।