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पिंटू के खरगोश / उषा यादव
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हैं सफेद रेशम के गोले।
कितने सुंदर,कितने भोले।
हरी घास है नरम बिछौना।
करते उस पर खाना -सोना।
आँखें चमक रही माणिक –सी।
पल पल नाक फड़कती कैसी।
टुकर –टुकर बस ताका करते।
सीधे इतने सबसे डरते।
गाजर –मुली के शौकीन।
सचमुच है कितने ये तीन।
उसके छोटे से टुकड़े पर।
तीनों संग चिपटते अक्सर।
कभी चौकड़ी भरते मनहर।
कभी कुदकते हरी घास पर।
भरा लबालब इनमे जोश।
ये है पिंटू के खरगोश।