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मौसम / यतींद्रनाथ राही

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मौसम तो आता है
तुमको
कभी पूछ कर
कब आया है?

स्वागत करो
उपेक्षा कर दो
या विरोध का करो प्रदर्शन
जो चल पड़ा
नहीं रुकता है
कभी समय का कोई पल छिन
गति तो
सार्थकता निसर्ग की
गति ही
जीवन की छाया है।
पथ के
पर्वत अवरोधों से
तूफानों के क़दम रुके कब?
किसके रोके रुक पाये हैं
चले मचल कर
ज्वार कभी जब
गति में है
कल्याण जगत का
यह परिवर्तन है
माया है।

संघर्षों की सतत् श्रृंखला
रक्ष और देवों की संस्कृति
नीलकण्ठ ही
रच पाते हैं
इतिहासों की
सदा सत्य कृति
महासिन्धु मंथन करके ही
जग ने
अमृत-घट पाया है।
30.6.2017