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सूरज उगेगा / यतींद्रनाथ राही

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बो दिया है जो पसीना
अंकुरित होगा
फलेगा।

दिन तुम्हारे हैं
समय है
और है वातावरण भी
आज, सब कुछ सहज ही
होता तुम्हे है
संवरण भी
हैं अकेले आज हम
पर, कारवाँ भी
कल बनेगा।

देखकर दीवानगी
करते रहोगे तुम उपेक्षित
सत्य यह है
एक दिन
होगा यही तुमको अपेक्षित
हम रहें
या ना रहें भी
पंथ तो
यह ही रहेगा।

सत्य पर
परदे गिरा कर
ज़िन्दगी ठहरी नहीं है
अनसुनी कोई करे
इन्सानियत
बहरी नहीं है
इन अँधेरों में
कभी तो
फिर नया
सूरज उगेगा।
4.10.2017