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दुनिया नहीं बदलने वाली / यतींद्रनाथ राही

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गाओ गीत
सुभाषित लिख दो
दुनिया नहीं
बदलने वाली।

लक्ष्य-भेद कुर्सी है केवल
लगता नहीं देश-हित चिन्तन
जूझ रहे हैं
तन से मन से
राम-नाम के पीछे
पर-धन
बाहर जितनी चकाचौंध है
भीतर उतना ही अँधियारा
कहाँ हमें लेकर जाएगा
यह विकास का थोथा नारा
अपना राग
ढपलिया अपनी
जैसे वन्दन
वैसी गाली।

बेलगाम वाणी के घोड़े
शिष्टाचरण रौंद कर चलते
बना रहे हैं सत्य असत् को
याकि स्वयं को ही हैं छलते
मिट जाएगी क्या दुनिया से
आदम की औलाद सुपावन
और कहाँ तक गिर जाएगी
मानवता अपनी अधुनातन
इस परिवर्तन महा भोर में
हमें निशा ही दिखती काली!

सोच-सोचकर
रह जाते हैं
चलते-चलते कलम रुकी है
जन-गण-मन विभ्रान्त खड़ा है
न्याय-नीति की कमर झुकी है
कोई राजा हो
रानी हो
दासी को दासी रहना है
डूबो!मरो!पार हो जाओ!
नदिया को तो
बस बहना है
सत्य यही युग का है
समझो
जय-जय करो!
बजाओ ताली!
10.12.2017