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क्षम्य नहीं है / यतींद्रनाथ राही

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क्षम्य नहीं है
शक्ति-प्रदर्शन
यह बढ़ता उन्मादन

सरिताओं के वेग
टूटती हैं पाषाण शिलाएँ
उद्वेलित हो उठती हैं जब
भीतर रक्त शिराएँ
तब फिर बढ़ते क़दम
मील के पत्थर बन जाते हैं
हम उनके झंडे उछालते
यश गाथा गाते हैं
पृष्ठ रचे हैं इतिहासों के
बदले हैं सिंहासन।

उमर नहीं होती चलने की
पढ़ने की लिखने की
दर्द अधर पर
नयन कोर में
गालों पर ढलने की
शब्दों में झनकार क्वणन रव
असि की चमक
ंिसंह की गर्जन
सजल मेघ मालाओं में भी
है विद्युत की तड़पन
शान्ति पाठ में भी होता है
कभी ताण्डवी नर्तन

चलो!
एक कुरूक्षेत्र और हम
खेल खेल में खेलें
लम्बी उमर
जिन्हें झेला है
वे भी तो कुछ झेलें
फितरत से
नापाक
ज़हर के दंश
फरेबी चालें
ऐसे कुटिल पड़ोसी को हम
और कहां तक पालें?
खुलती है जब
आँख तीसरी
है निश्चित विध्वंसन।
25.12.17