भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अवधान होगा / यतींद्रनाथ राही

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:53, 23 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यतींद्रनाथ राही |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब तलक काले किये हैं
सिर्फ गोरे पृष्ठ हमने
है मगर विश्वास
कल यह गीत का
अवदान होगा।

सीढ़ियाँ इक्यान्वे तो
चढ़ चुका हूँ
धर रहे हैं अब
शिखर ऊँचे निमन्त्रण
साँझ का सूरज बिदायी लेरहा है
पास आता जा रहा
अँधियार क्षण-क्षण
है सतत क्रम यह
निशा के बाद
फिर दिनमान होगा।

लग रहा है
ठहर कुछ विश्राम कर लूँ
कल सुबह, चलना बहुत
हारा नहीं हूँ
हौंसलों ने हर चुनौती
बाँध ली है मुट्ठियों में
मैं किसी अधिमान्यता
विश्वास का मारा नहीं हूँ
गीत मेरा हर चरन को
एक नव,
उद्गान होगा।

यों नहीं चुपचाप जाऊँगा
तुम्हारी महफिलों से
है बहुत मुश्किल निकलना
प्यार का बन्धन जटिल है
किन्तु सन्मुख गर्भगृह का
द्वार भी तो है अनावृत
देवता तो स्वयं भरने अंक में
मुझको विकल है
अब तुम्हीं सोचो कि यह
अवसान या
अवधान होगा।
है मगर विश्वास
कल यह
गीत का अवदान होगा।
31.12.2017