भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेतना / नई चेतना / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:18, 15 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=नई चेतना / महेन्द्र भटनागर }} ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर दिशा में जल उठी ज्वाला नयी,

लालिमा जीवन-जगत पर छा गयी !

है नयी पदचाप से गुंजित मही,

ज्योति अभिनव हर किरण बिखरा रही !

छिन्न सदियों का अंधेरा हो गया,

राह पर जगमग सबेरा है नया !

यह विगत युग का न कोई साज़ है,

रूप ही बदला धरा ने आज है !

वर्ग-भेदों को मिटाने चेतना

कर रही सामान्य की आराधना !

काल बदला और बदली सभ्यता,

दे रही नव फूल संस्कृति की लता !

फूल वे जिनमें मधुर सौरभ भरा,

मुसकराती पा जिन्हें भू-उर्वरा !

स्वार्थ, शोषण की इमारत ढह रही,

भग्न ढूहों पर सृजन-सरि बह रही !

शीत के लघु-ताप से सिकुड़े हुओं,

पास आता जा रहा 'क्यूरो सिवो' !

धूप से झुलसे हुए 'होरी' कृषक

आ रही 'जल की हवा' जीवन-जनक !

उर लगाले जीर्ण 'धनिया'-देह को

(रोक ले रे ! छलछलाते स्नेह को !)

आज तो आकाश अपना हो गया,

आदमी का, सत्य सपना हो गया !

1948