भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी लश्कर हुई / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:31, 25 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलकांत सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी लश्कर हुई,
झाबुआ-बस्तर हुई
स्वप्न आसामी हुये
आँख अमृतसर हुई,
वियतनामी ओंठ पर
प्यास छू मंतर हुई,
हौंसला इज़रायली
ज़िन्दगी बेघर हुई.
गीत नेता बन गया
गीतिका अवसर हुई.
लेखनी वाले लुटे
इन्दिरा रहबर हुई.
वे तमिल, कोलम्ब वे
चोट लंका पर हुई.
है नियम बहुमत मगर
अल्पमत रूलर हुई.
जो धरा का स्वर्ग थी
वो जमीं बंजर हुई.
वे हुए अफसर बड़े
और वह तस्कर हुई.
चाल बुन्देली अरे
डिस्को डांसर हुई.
रोशनी ही रोशनी
रोशनी नश्तर हुई.
नाम लेते ही 'कमल'
यश कथा घर-घर हुई.