भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपना ऐसा शहर दोस्तो / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:03, 25 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलकांत सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपना ऐसा शहर दोस्तो।
आतंक आठ पहर दोस्तो।

हंसने रोने की छूट नहीं
गुमसुम रहना कहर दोस्तो,

वक्त की नब्ज टटोलिएगा
है शैतानी असर दोस्तो।

भाले, बरछी, तोप क्या करेंगे?
यह तन, यह मन, जहर दोस्तो,

मतला-ए-ग़ज़ल बनकर दिखा
मिल जायेगी बहर दोस्तो।