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अपना ऐसा शहर दोस्तो / कमलकांत सक्सेना
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अपना ऐसा शहर दोस्तो।
आतंक आठ पहर दोस्तो।
हंसने रोने की छूट नहीं
गुमसुम रहना कहर दोस्तो,
वक्त की नब्ज टटोलिएगा
है शैतानी असर दोस्तो।
भाले, बरछी, तोप क्या करेंगे?
यह तन, यह मन, जहर दोस्तो,
मतला-ए-ग़ज़ल बनकर दिखा
मिल जायेगी बहर दोस्तो।