भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शब्द / संजीब कुमार बैश्य / प्रभात रंजन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:23, 7 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजीब कुमार बैश्य |अनुवादक=प्रभा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
शब्द उनके ह्रदय से
चिपक गए हैं
उनके ख़ाली पेट
सड़क पर
विद्रोह करते हैं
उनके फटे कपड़े
बनाते हैं दृश्य
उनकी आवाज़ों में
संगीत है
नीरस धरती का
वे
अव्यवस्था की धुन पर
नाचते हैं