भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरकती प्यार की चुनरी / ज्योति खरे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 11 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योति खरे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बाँध कर पास रखना
तुम्हारा काम है
मैं पंछी हूँ
उड़ जाऊँगा
तुम अकेले ताकते रहना
अपनों से में
जुड़ जाऊँगा..............
साथ रहते अगर
प्यार में उड़ना सिखाता
स्वर्ग के साये में
आसमान का अर्थ बताता
तुम नहीं तो क्या करूँ
मैं अकेला
फड़फड़ाऊँगा
बैठकर आँगन में जब
चावल चुनोगी
सरकती प्यार की चुनरी
स्मृतियों के साथ रखोगी
चहकोगी चिड़िया बनकर
मैं भटकता
घर तुम्हारे
मुड़ आऊँगा