भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बेमालूम दर्रों के इलाके में / राहुल कुमार 'देवव्रत'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:57, 13 जून 2018 का अवतरण (Rahul Shivay ने पीड़ा के क्षण में / राहुल कुमार 'देवव्रत' पृष्ठ [[बेमालूम दर्रों के इलाके में / राहुल कुमा...)
आज फिर बात चल निकली है।
कि कितनी रातें काटी हैं हमने,
आंखों - आंखों में।
जख्मों पर चोट.....
दोगुणा दर्द देती है।
फिर हमारा दर्द भी तो
बड़ा जिद्दी ठहऱा।
यह तो तभी कम हो,
जब मरहम हमें तुम,
और तुम्हें हम लगावें।
बेजरूरत के अपनेपन पर हंसी आती है।
पता नहीं....
कोई उन्हें समझा क्यों नहीं पाता?
यहां ज्ञान और हमदर्दी की बातें
सब बेमानी हैं।