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हमारा सर जो होता ख़म कहीं पर / राज़िक़ अंसारी
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हमारा सर जो होता ख़म कहीं पर
किसी ओहदे पे होते हम कहीं पर
नए किरदार लिक्खे जाएं फिर से
कहानी में नहीं है दम कहीं पर
मेरे कमरे में बस मेरे अलावा
कहीं आंसू रखे हैं ग़म कहीं पर
मेरी कोशिश है रख कर भूल जाऊं
तुम्हारी याद की अलबम कहीं पर
नहीं रहता कभी मायूस लोगों
हमेशा एक सा मौसम कहीं पर