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सिर्फ़ सूदो-जियाँ समझता है / उत्कर्ष अग्निहोत्री

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सिर्फ़ सूदो-जियाँ समझता है।
बात कोई कहाँ समझता है।

मैं जहाँ हूँ वहाँ अकेला हँू,
वो मुझे कारवाँ समझता है।

डूबकर देख तो ज़रा उसमें,
तू जिसे बेज़ुबाँ समझता है।

वो सुखनवर है फूल के जैसा,
ख़ुशबूओं की ज़ुबाँ समझता है।

क्या बताएगा फ़लसफ़ा कोई,
तू ख़ुदी को कहाँ समझता है।