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झींगुर / जोस इमिलिओ पाचेको / राजेश चन्द्र
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(कविता का एक मोर्चा और दृष्टान्त)
मैं पुन: ग्रहण करता हूँ
अर्थसंकेत झींगुरों से :
उनका कोलाहल निराशाजनक है,
उनके डैनों की अकुलाहट
निष्प्रयोजन सर्वथा।
यदि अब भी नहीं है
उसमें कूट सन्देश
जिसे वे पहुंचाना चाहते हों
एक-दूसरे तक
तो (झींगुरों के लिए) रात
रात नहीं
हो सकती।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र