भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोक-लाज / पंकज चौधरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:07, 10 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम लोक-लाज की सबसे ज्‍यादा चिंता करते हो
इसका बोझ तुम्‍हारे सर पर सवार रहता है
इसीलिए चाहते हुए भी
तुम वह सब नहीं कर पाते
जो तुम करना चाहते हो

अब तुम
इसके बोझ को सर से उतार फेंको
अपने मन की कर डालो

लोक-लाज का फेरा है सबसे बड़ा घेरा
इसने जिसको घेरा
दुनिया ने उसको पेरा

लोक-लाज को जिसने तजा
दुनिया ने लहराई उसकी धजा!