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ओ ! माँआद्या प्रकृति / कविता भट्ट

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निज चिन्ताएँ
और उद्वेग सभी
तुझको सौंपे
ओ माँ ! आद्या प्रकृति
वर सदैव
अनंत चुम्बन भी
मेरे मस्तक
धरे तूने नित माँ
हरती रही
जीवन के विषाद
न प्रतिदान
कभी कोई भी चाहा,
दुस्साहस है
तुझ पर लिखना
कोई रचना ,
क्योंकि मैं तो हूँ स्वयं
तेरी रचना
मैं अपूर्ण, तू पूर्ण
रह न सकूँ
बिन कहे-लिखे भी
मैं हूँ कृतज्ञ
स्नेहमयी समझ
मेरा निःशब्द मौन !