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अकेला / महेन्द्र भटनागर

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अब तो, अरे

कोई याद तक करता नहीं,
आता नहीं !

मृत्यु के आगोश में
ज़िन्दगी खामोश है
अब तो, अरे
कोई गीत
मन रचता नहीं,
गाता नहीं !
वाद्य चुप हैं
कोई स्वर
न बजता है / उभरता है !

जो थे
बीच पथ में खो गये,
जो हैं
थके - हारे / ऊब - मारे
सो गये !
किसको बुलाएँ,
किसको जगाएँ ?
दुनिया अपरिचित हो गयी,
हम बिराने हो गये !

किसके पास जाएँ,
किसे अपना बनाएँ ?
लीन हैं सब
स्वयं में,
अपने हर्ष में
ग़म में !
नहीं कोई रहा अब संग,
ज़िन्दगी बेरंग !