भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिले-डुले कर्णफूल /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:38, 18 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम शरण शर्मा 'मुंशी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिले-डुले
कर्णफूल
हिले पात तन के !
दिशि-दिशि
बन्ध गए नयन
गरजे घन मन के !
ठगे खड़े
खग-मृग
सज गए साज वन के !
वासन्ती
विहँसी
खिल गए प्राण जन के !
बन्द कोष
खुले
कण बिखरे यौवन के !
शत-शत गत
वर्ष हुए
दास एक क्षण के !