भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हँसती है घास /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:31, 18 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम शरण शर्मा 'मुंशी' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक धार मार कर
चली गई
बयार ।
सिहर रहा
मन अब तक,
घाव
आर-पार ।
हँसती है
घास
आस-पास —
हँसते हैं
रक्त-रंगे
ढीठ चिनार !