हल्की बूँदा-बाँदी में भी
लपेट ली है उसने शाल
काली, मैली शाल देह पर डाले
झुर्रियों वाले मुँह से
झरती हुई बूँदों को देखती
निर्लिप्त बैठी हुई
घुटने मोड़कर पेट में सटाये
वक्त और काम की मार से टूटी हुई देह
आसानी से मुड़ जाती है चाय पीती वह गरीब औरत