भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चैन मन में न मलीन सुनैन परे जल में न तई है / ताज
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:13, 29 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ताज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> चै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चैन मन में न मलीन सुनैन परे जल में न तई है।
'ताज' कहै परयंक यों बाल ज्यों चंपकी माल बिलाय गई हैं॥
नेकु बिहाय न रैन कछू यह जान भयानक भारि भई है।
भौन पैं भानु समान सुदीपक अंगन में मानों आगि दई है॥