भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये बांसुरियावारे ऐसो जिन बतराय रे / रसिक बिहारी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 30 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रसिकबिहारी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatP...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये बांसुरियावारे ऐसो जिन बतराय रे।
यों बोलिए! अरे घर बसे लार्जान दबि गई हाय रे॥
हौं धाई या गैलहिं सों रे! नैन चल्यो धौं जाय रे।
'रसिकबिहारी' नांव पाय कै क्यों इतनो इतराय रे॥