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होरियसा रँग खेलत आओ / प्रतापकुवँरि बाई
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होरियसा रँग खेलत आओ.
इला पिंगला मुख मणि नारी ता संग खेल खिलाओ॥
सुरत पिचकारी चलाओ.
काचो रंग जगत को छाँड़ौ साँचो रंग लगाओ.
बाहर भूल कबौं सत् जाओ काया-नगर बसाओ॥
तबै निरभै पद पाओ.
पाँचौ उलट धरे घर भीतर अनहद नाद बाजाओ.
सब बकवाद दूर तज दीजै ज्ञान-गीत नित गाओ॥
पिया के मन तब ही भाओ.
तीनो ताप तीन गुण त्यागो, संसा सोक नसाओ.
कहे प्रतापकुँवरि हित चित सों फेर जनम नहिं पाओ॥
जोत में जोत मिलाओ.