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शब्द जब बजते हैं / प्रभात कुमार सिन्हा
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प्रक्षेपित आयुध नष्ट हो सकते हैं रास्ते में
विकल्पों से घिरे संकल्प
अपनी राह भूल सकते हैं
जरा-सी हवा चली कि
पर्वत-शिखर पर विश्राम करते मेघ
छिन्न-भिन्न हो सकते हैं
पर शब्द जब बजते हैं
तो दुष्टों के वक्ष दरक उठते हैं
घृणा की बिजली के कौंधने से
चौंधिया जाती हैं आततायियों की आँखें
उन्हें भागने का रास्ता नहीं दिखता।