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सपनों में मौजूद है गीत / प्रभात कुमार सिन्हा

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हमारी हार की निरन्तरता अभी बनी है
ऐसे में जीत के सपनों को तह लगाना ज़रूरी है
सपनों में जीत की अपरम्पार संभावनाएँ मौजूद हैं
बसुन्धरा का बार-बार सजना
हमारे जीवन की पिपासा को जाग्रत रखता है
माता की लाज से ही लिपटा है सौगन्ध
गेहूँ के दानों में जबतक दूध भरता रहेगा
तबतक हम जिन्दा रहेंगे
आँचल की गाँठ में आता रहेगा नवान्न
हमारी मुट्ठियाँ तैश में बंधी रहेंगी
खलिहानों में अलभ्य गीत मुस्काते रहेंगे
लड़ना हमारे सहज भाव हैं
लड़ने की आकांक्षा में दंभ की गंध नहीं है
जबकि विपत्तियाँ वेगमयी बनी हुई हैं
इस समय जीत के सपनों को तह लगाना ज़रूरी है
सपनों में ही हमारी
निर्णायक जीत मौजूद है।