भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिनिगी के रंग / रामरक्षा मिश्र विमल
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 4 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामरक्षा मिश्र विमल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
1
उहाँ का रोज
गवार्इंले जिनिगी
जिये खातिर।
2
जिये के चाहीं
जिनिगी अमिरित
पिये के चाहीं।
3
जियल ठीक
जहरो जिनिगी के
पियल ठीक।
4
मुसकरा के
जियेला जिंदादिल
हर पल के।
5
जीयत चलीं
बहार पतझड़
लागले रही।
6
टुटबे करी
जिनिगी खेलौना ह
कबो ना कबो।
7
जागीं जी जागीं
कब तक सूतबि
जिनिगी छोट।
8
काटत बानी
हर पल कसहूँ
जीये खातिर।
9
ढोवऽ मत
पहाड़ का माफिक
जिनिगी हटे।
10
सासु भइली
गवनहरी बहू
भर जिनिगी।
11
जीती भा हारीं
बाकी खेलीं खेलाईं
ईहे जिनिगी।
12
जिनिगी माने
ए कोठिला के धान
ओ कोठिला में।
13
जिनिगी माने
कापी पेन सियाही
चलत रहीं।