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रौशनी का सुराग़ गाइब है / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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रौशनी का सुराग़ ग़ाइब है
रास्ते का चिराग़ ग़ाइब है
आज सब से बड़ा ज़हीन है वो
जिस के सर से दिमाग़ ग़ाइब है
उम्र जिन की गुनाह में गुज़री
उन के दामन से दाग़ ग़ाइब है
रह रहे हैं मशीनी दौर में हम
ज़िंदगी से फ़राग़ ग़ाइब है
तश्ना लब हैं तमाम बादा कश
मयकदे से अयाग़ ग़ाइब है
हर तरफ़ हैं ग़नीम सफ़-बस्ता
दोस्तों का सुराग़ ग़ाइब है
किस की जादूगरी है ये 'रहबर`
फल तो हाज़िर हैं बाग़ ग़ाइब है